कविता: सोमवार को आई रेल
कविता: सोमवार को आई रेल सोमवार को आई रेल Iमंगलवार को खेला खेल Iबुधवार को नानी आई Iगुरूवार को खाई मिठाई Iशुक्रवार को कुल्फी खाई Iशनिवार को खाई मलाई Iफिर…
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कविता: सोमवार को आई रेल सोमवार को आई रेल Iमंगलवार को खेला खेल Iबुधवार को नानी आई Iगुरूवार को खाई मिठाई Iशुक्रवार को कुल्फी खाई Iशनिवार को खाई मलाई Iफिर…
गरमी आई, गरमी आई,घर-घर में यह पंखा लाई |सबको पास बुलाता पंखा,सबको हवा खिलाता पंखा ।मीठी नींद सुलाता पंखा,खूब मज़ा दिलाता पंखा । यहां 5 प्रश्न और उनके उत्तर दिए…
मेरी पुस्तक रंग बिरंगीकहे कहानी यह सतरंगीकहती बातें नई पुरानीजैसे बोलें दादी नानीपरीलोक की सैर करातीकभी कभी वो हमें डरातीकभी हँसाती कभी रुलातीदुनियां भर की बात बताती अब पांच सरल…
तुकांत शब्दों वाली कविता बड़े सबेरे मुर्गा बोला,चिड़ियों ने अपना मुँह खोला।आसमान पर लगा चमकने,लाल लाल सोने का गोला।ठंडी हवा बही सुखदाई,सब बोले दिन निकला भाई। इन्हें भी पढ़ें-
खीरा – ककड़ी कल खीरे से, बोली ककड़ी । कद्दू की बतिया, खा गई बकरी। खीरा बोला, क्यों री ककड़ी! देखी थी तो, क्यों न पकड़ी? इन्हें भी पढ़ें-
दिन निकला फिर बिटिया आईतकिया और खटिया लाईचिनमिन चिड़िया उड़कर आईदाना और तिनका लाईरिमझिम रिमझिम बारिश आईबिटिया ने फिर टिकिया खाई इन्हें भी पढ़ें-