उत्तराखंड के प्राथमिक विद्यालयों में सरकारी शिक्षक बनने की चाह रखने वाले स्पेशल बीएड और टीईटी धारकों को नैनीताल हाईकोर्ट ने बड़ा झटका दिया है। हाईकोर्ट ने इन अभ्यर्थियों की याचिकाएं खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि प्राथमिक विद्यालयों में शिक्षक बनने के लिए स्पेशल बीएड और टीईटी की योग्यता आवश्यक नहीं है।
देहरादून: नैनीताल हाईकोर्ट ने उत्तराखंड के सरकारी प्राथमिक विद्यालयों में शिक्षक पद पर नियुक्ति पाने की इच्छा रखने वाले स्पेशल बीएड और टीईटी धारकों की याचिकाओं को खारिज कर दिया। न्यायालय ने इन अभ्यर्थियों की दलीलें सुनने के बाद यह निर्णय दिया और सुप्रीम कोर्ट के पूर्व के आदेश को बरकरार रखा।
याचिकाकर्ताओं, जिनमें गोपाल सिंह गोनिया व अन्य शामिल हैं, ने कोर्ट में यह तर्क रखा कि उनके पास प्राथमिक विद्यालय में अध्यापक बनने के लिए आवश्यक योग्यता है। उन्होंने इसके लिए स्पेशल बीएड और टीईटी की परीक्षा पास की है और सरकारी विज्ञप्ति के अनुसार आवेदन भी किए थे। हालाँकि, सुप्रीम कोर्ट के आदेश के चलते राज्य सरकार ने उनके आवेदन रद्द कर दिए थे, जिसको लेकर उन्होंने हाईकोर्ट में पुनर्विचार की मांग की थी।
मामले की सुनवाई के दौरान, कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए निर्देशों का पालन करते हुए याचिकाओं को खारिज कर दिया और कहा कि प्राथमिक विद्यालयों में शिक्षक बनने के लिए स्पेशल बीएड और टीईटी की आवश्यकता नहीं है।
मुख्य बिंदु:
- कोर्ट का निर्णय: नैनीताल हाईकोर्ट ने स्पेशल बीएड और टीईटी धारकों की याचिकाएं खारिज कीं।
- सुप्रीम कोर्ट का निर्देश: हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व में दिए गए आदेश का समर्थन किया।
- प्राथमिक विद्यालयों में शिक्षक पद: स्पेशल बीएड और टीईटी धारकों की योग्यता प्राथमिक शिक्षकों के लिए आवश्यक नहीं मानी गई।
- याचिकाकर्ताओं का तर्क: अभ्यर्थियों का कहना था कि उन्होंने सरकारी प्रक्रिया के तहत आवेदन किए थे और स्पेशल बीएड और टीईटी पास किया था।
- सरकारी विज्ञप्ति: राज्य सरकार ने पूर्व में आवेदन स्वीकार किए थे, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर उन्हें रद्द कर दिया गया।
इस फैसले से उत्तराखंड के स्पेशल बीएड और टीईटी धारकों के लिए सरकारी प्राइमरी स्कूल में शिक्षक बनने का सपना फिलहाल अधूरा रह गया है।