Bachcho ki kahani: राजू और मोहन की सच्ची दोस्ती।

Selfless Prayer Story in Hindi: Raj and Mohan's Friendshipस्वार्थहीन प्रार्थना की कहानी जो सच्चे दोस्ती और ईश्वर पर विश्वास की शक्ति को दर्शाती है।

जानिए स्वार्थहीन प्रार्थना की एक ऐसी प्रेरणादायक कहानी, जो सच्चे दोस्ती और ईश्वर पर विश्वास को दिखाती है। इस प्रेरक कहानी को जरूर पढ़ें! (Bachcho ki kahani)

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राजू और मोहन बहुत अच्छे दोस्त थे। वे पड़ोसी थे, स्कूल में सहपाठी थे और बाद में एक ही ऑफिस में काम करते थे।

एक दिन, उन्होंने नई जगहों की खोज करने के लिए समुद्री यात्रा पर जाने का फैसला किया। वे एक बड़े जहाज से यात्रा पर निकले। लेकिन यात्रा के दौरान मौसम बहुत खराब हो गया। जहाज समुद्र के बीचों-बीच टूट गया। ज्यादातर लोग इस हादसे में मारे गए, लेकिन राजू और मोहन तैरकर पास के एक छोटे से द्वीप पर पहुँच गए।

वह द्वीप पूरी तरह वीरान था। वहाँ न तो कोई पेड़ था और न ही खाने के लिए कुछ। राजू और मोहन समझ गए कि वे यहाँ बिना भगवान की मदद के नहीं बच सकते। उन्होंने भगवान से प्रार्थना करने का निर्णय लिया। दोनों ने सोचा कि किसकी प्रार्थना ज्यादा प्रभावशाली होगी।

राजू द्वीप के पूर्वी किनारे पर गया और वहाँ घुटनों के बल बैठकर प्रार्थना करने लगा। मोहन द्वीप के पश्चिमी किनारे पर जाकर भगवान से प्रार्थना करने लगा।

राजू ने भगवान से खाने के लिए प्रार्थना की। हैरानी की बात थी कि कुछ ही देर में समुद्र किनारे ढेर सारे फल और सब्जियाँ आ गईं।

दो दिन बाद, राजू ने भगवान से एक सुंदर पत्नी की माँग की, क्योंकि उसे द्वीप पर अकेलापन महसूस हो रहा था। कुछ घंटों में एक और जहाज हादसे का शिकार हुआ और उसमें से एक लड़की बचकर द्वीप पर पहुँच गई। राजू ने उस लड़की से विवाह कर लिया।

राजू जो भी माँगता, उसे मिल जाता।

लगभग एक महीने बाद, राजू ने भगवान से घर वापस जाने के लिए एक जहाज माँगा। कुछ ही देर में एक जहाज द्वीप पर आ गया।

जब राजू और उसकी पत्नी जहाज में बैठने जा रहे थे, तो उसने किसी की आवाज़ सुनी। वह आवाज़ कह रही थी, “क्या तुम अकेले जा रहे हो, अपने जीवन के साथी को यहाँ छोड़कर?”

राजू चौंक गया और बोला, “आप कौन हैं और किसके बारे में बात कर रहे हैं? मेरी पत्नी मेरे साथ है!”

आवाज़ ने कहा, “मैं वही हूँ, जिसे तुमने प्रार्थना की थी। जिसने तुम्हें जीवन, खाना, और साथी दिया।”

राजू घुटनों के बल बैठ गया और बोला, “भगवान, आपका धन्यवाद!”

तभी राजू को अपने दोस्त मोहन की याद आई, जिसे वह पूरी तरह भूल चुका था। उसे बहुत पछतावा हुआ।

भगवान ने कहा, “मैंने तुम्हारी प्रार्थना पूरी नहीं की थी। मैं तो सिर्फ मोहन की प्रार्थना का उत्तर दे रहा था। उसने मुझसे सिर्फ एक ही प्रार्थना की थी – ‘हे भगवान, जो भी राजू माँगे, उसे दे देना।'”

राजू यह सुनकर रो पड़ा और दौड़कर द्वीप के दूसरे किनारे पर गया, लेकिन मोहन वहाँ नहीं था।

राजू ने भगवान से पूछा, “मोहन कहाँ है?”

भगवान ने उत्तर दिया, “मैं उसे अपने पास ले गया। ऐसा स्वार्थहीन और सुनहरा दिल वाला व्यक्ति मेरे साथ रहने के योग्य है। लेकिन मैं तुम्हारी सभी प्रार्थनाएँ पूरी करता रहूँगा, क्योंकि उसने यही माँगा था।”

राजू पूरी तरह टूट गया। उसने समझा कि मोहन की प्रार्थनाएँ क्यों ज्यादा प्रभावशाली थीं।

स्वार्थहीनता (निःस्वार्थता) प्रार्थना का सबसे उच्चतम रूप है।

By SARIKA

My name is SARIKA. I have completed B.Ed and D.El.Ed. I am passionate about teaching and writing. Driven by this interest, I am associated with the Basic Shiksha Portal. My goal is to contribute to the field of education and provide helpful resources for children's development.

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