उत्तर प्रदेश में शिक्षा व्यवस्था को और मजबूत करने के लिए राज्य सरकार ने बड़ा कदम उठाया है। अब परिषदीय स्कूलों में तीसरी कक्षा के छात्र भी एनसीईआरटी की किताबों से पढ़ाई करेंगे। राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 को प्रभावी बनाते हुए राज्य में अगले शैक्षणिक सत्र 2025-26 से तीसरी कक्षा में एनसीईआरटी की किताबें लागू की जाएंगी, जिनमें स्थानीय संस्कृति और भाषाओं का समावेश होगा।
लखनऊ: उत्तर प्रदेश सरकार ने परिषदीय स्कूलों में तीसरी कक्षा के छात्रों के लिए एनसीईआरटी की किताबें अनिवार्य करने का फैसला लिया है। अभी तक एनसीईआरटी की किताबें कक्षा 1 और 2 में ही लागू थीं, लेकिन अब शिक्षा विभाग इसे तीसरी कक्षा में भी लाने जा रहा है। इसका उद्देश्य छात्रों को एक मजबूत शिक्षा आधार प्रदान करना और उन्हें राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 के सिद्धांतों के अनुसार शिक्षित करना है।
शिक्षा विभाग का मानना है कि एनसीईआरटी की किताबें छात्रों के लिए एक मानक और गुणवत्तापूर्ण शैक्षिक सामग्री प्रदान करती हैं। इसी के तहत अब तीसरी कक्षा के लिए भी इन किताबों का इस्तेमाल किया जाएगा। इसके साथ ही किताबों में 10-15% तक बदलाव की योजना है, जिससे क्षेत्रीय भाषाओं और संस्कृतियों को ध्यान में रखते हुए किताबों में सुधार किया जा सके।
HIGHLIGHTS
- एनसीईआरटी किताबें: तीसरी कक्षा में भी अब एनसीईआरटी की किताबों से पढ़ाई होगी।
- बदलाव का उद्देश्य: किताबों में 10-15% सुधार, जिससे स्थानीय भाषाओं और संस्कृति को बढ़ावा मिले।
- प्रभावित विषय: हिंदी, अंग्रेजी, और सामाजिक विज्ञान में बदलाव; गणित और संस्कृत/उर्दू में बहुत बदलाव नहीं।
- मुफ्त सामग्री: छात्रों को किताबें, ड्रेस, जूते-मोजे और स्टेशनरी का लाभ मुफ्त में मिलेगा।
- सत्र शुरू: शैक्षिक सत्र 2025-26 से लागू।
शिक्षा विभाग ने स्पष्ट किया है कि ये बदलाव छात्रों को अपनी संस्कृति, परंपरा और क्षेत्रीय भाषाओं से जोड़ने के लिए किए जा रहे हैं। हिंदी और अंग्रेजी के पाठ्यक्रम में उत्तर प्रदेश की क्षेत्रीय भाषाओं जैसे भोजपुरी, बुंदेलखंडी, अवधी आदि की कुछ शब्दावली शामिल की जाएगी। इससे छात्रों को अपनी मातृभाषा और संस्कृति से जुड़ने का अवसर मिलेगा।
उत्तर प्रदेश का यह फैसला छात्रों को न केवल एक समृद्ध शिक्षा प्रणाली प्रदान करेगा, बल्कि उन्हें अपने स्थानीय परिवेश और संस्कृति से जोड़ने में भी मदद करेगा। शिक्षा विभाग के इस प्रयास से छात्रों को अपनी जड़ों से जुड़ने का अवसर मिलेगा और वे राष्ट्रीय व क्षेत्रीय स्तर पर अच्छी शिक्षा प्राप्त कर सकेंगे।