कविता- खीरा – ककड़ी

खीरा – ककड़ी

कल खीरे से, बोली ककड़ी ।

कद्दू की बतिया, खा गई बकरी।

खीरा बोला, क्यों री ककड़ी!

देखी थी तो, क्यों न पकड़ी?

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